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________________ भष्टमः सर्गः 225 अर्थ-समस्त भूमण्डल के अलङ्कार स्वरूप इस भरत क्षेत्र में एक मालव नाममा देश-स्थान है. यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार वर्षों से उदभूत हुई कीर्ति रूपी विशिष्ट विभूति से प्रसिद्ध है. अर्थात् यहां की जनता इन चार पुरुषार्थों के सेवन करने में दत्तचित्त रहती है. // 28 // સઘળા ભૂમંડળના આભૂષણરૂપ આ ભરત ક્ષેત્રમાં માલવ નામનો એક પ્રદેશ છે, એ ધર્મ, અર્થ, કામ અને મોક્ષ એ ચારે વર્ગોથી ઉત્પન્ન થયેલ કીર્તિરૂપી વિશેષ પ્રકારની વિભૂતિથી પ્રસિદ્ધ છે, એટલે કે ત્યાંને જનસમૂહ આ ચારે પુરૂષાર્થોના સેવન કરવામાં तत्५२ २डी इत्तयित्त 2 छ. // 28 // . ग्रामाः समस्ता महिषीयुतत्वात् नरेन्द्ररूपाः प्रतिभान्ति यत्र / नक्षत्रराजि द्विजराजवत्वात् निशीथमावं ह्यनुकुर्वते ते // 29 // अर्थ-यहां के समस्त ग्राम महिषी-भस या पट्टरानी से युक्त होने के कारण नरेन्द्र के जैसे लगते हैं तथा नक्षत्र राजि और द्विजराज-चन्द्रमा वाले होने से वे रात्रि का अनुकरण करते हैं अर्थात् यहां ग्रामों में न क्षत्रिय हैं न द्विजराज हैं-केवल किसान ही हैं रात्रि का वे अनुकरण इसलिये करते हैं कि रात्रि में ही नक्षत्रों का और चन्द्रमा का उदय होता है. रात्रि को देखता है // 29 // આ પ્રદેશના સઘળા ગામે મહિષી ભેંસ અથવા પાણીથી યુક્ત હોવાથી નરેન્દ્ર જેવા જણાય છે. તથા નક્ષત્રરાજી અને બ્રિજરાજ ચન્દ્રમા વાળા હેવાથી તેઓ રાત્રિનું અનુકરણ કરે છે. એટલે કે અહીંના ગામમાં ક્ષત્રિય કે દ્વિજે હેતાનથી, કેવળ ખેડુતો જ હોય છે તેથી તેઓ રાત્રિનું અનુકરણ એ કારણે કરે છે કે–રાત્રે જ નક્ષત્રોને અને ચંદ્રમાનો ઉદય થાય છે. ર૯ पुर्यस्ति तत्रोज्जयिनी विशाला चतुर्वृहद्गोपुर वैर्यगम्या / विभाति यातीव दिवौकसां या पुरीं विजेतुं गगनंकषैः स्वैः // 30 // सौधैः सुधादीधिति भूर्तिवद्भिः सुधा विलिप्ताङ्गविराजमानैः / अहर्निशं रक्षति या महीशो वप्रच्छलात्कुण्डलिताङ्गकान्तः // 31 // अर्थ-इसी मालव देश में एक बहुत बडी नगरी है. जिसका नाम उज्जयिनी है. इसके चार बडे 2 दरवाजे हैं जिन के कारण शत्रुजन इसमें प्रवेश तक नहीं कर सकते हैं इसमें जो राजमहल बने हुए हैं वे इतने ऊँचे हैं कि इन्हों ने आकाश को छू लिया है. इससे ऐसा होता है कि मानों यह नगरी सुर पुर को ही परास्त करने के लिये कटिबद्ध हो रही है वे राजमहल चन्द्रमा की जैसी
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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