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________________ - - लोकाशाहधरिते अथ चतुर्थः सर्गः प्रारभ्यते आविरासी द्रवीराशि तनसां कोमलैः करैः / धुन्वन् भासयन विषयान काष्ठा अष्ट प्रकाशयन् // 1 // अर्थ-सूर्य का उदय हुआ. अंधकार उसकी कोमल किरणों से दूर हो गया. घटपटादि पदार्थों का स्पष्ट प्रतिभास होने लगा. एवं समस्त दिशाओं में उसका प्रकाश फैल गया. // 1 // સૂર્ય ઉદય થયો, અંધકાર તેના કોમળ કિરણોથી દૂર થશે. ઘટ પટાદિ પદાર્થો સ્પષ્ટ જણાવા લાગ્યા. તથા સઘળી દિશાઓમાં સૂર્યને પ્રકાશ પ્રસરિત થે. ના भाति माभिरयं तावत्प्राची श्यामोत्तरच्छदः। अथवा-तद्गृहस्यायं विद्युद्दीवो महोज्ज्वलः // 2 // अर्थ-जिस प्रकार किसी नवोढा नायिका का की ओडनी चमकती है, उसी प्रकार सूर्य भी अपनी प्रभा से चमकने लगा-तो देखने वालों को ऐसा प्रतीत हुआ कि यह पूर्वदिशा रूपी श्यामा का उत्तरच्छद-ओडनी-है. अथवा-उसके घर का यह प्रकाशमान बिजली का एक दीपक है // 2 // જેમ કઈ નવોઢા સ્ત્રીની ઓઢણી ચમકે છે, એ જ પ્રમાણે સૂર્ય પિતાના તેજથી ચમકવા લાગે જેથી જેનારાઓને એમ જણાયું કે આ પૂર્વ દિશા રૂપી સ્ત્રીનું ઉત્તર છદઓઢવાનું વસ્ત્ર છે, અથવા તેને ઘરને પ્રકાશમાન આ વીજળીને દીપક છે. મારા यद्वाऽयं व्योमरामाया अभिरामोऽस्ति कंदुकः। . दिशासीमन्तिनी सीमन्तस्य सिन्दूरपिण्डिका // 3 // अर्थ-अथवा-यह आकाश श्री रूपी नायिका खेलने का सुन्दर गेंदतो नहीं है ? या दिशारूपी सीमन्तिनी की मांग सिन्दूर की पिण्डी तो नहीं है. ? // 3 // અથવા આ આકાશરૂપી નાયિકાને રમવાને સુંદર દડો તે નથી? અથવા દિશા રૂપી સમન્વિનીને સેંથામાં પૂરવાનો પિડતો નથી ? अक्षकारागृहे रात्री, क्षिप्ताश्छविचौर्यतः / राज्ञा मुक्ता मिलिन्दास्ते, तं स्तुवन्तीह झंकृतैः // 4 // अर्थ-यह प्रसिद्ध है कि चोरी करने वाले को कारावास की सजा मिलती है. और यदि कोई वहां से उसकी मुक्ति करादे तो वह उसकी स्तुति करता हैं. इसी प्रकार अपने कलङ्क की छवि की (अत्यन्त कृष्ण होने के कारण) इन
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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