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________________ लोकाशाहरते ___ अर्थ-इस प्रकार से इस कर्णायताक्षी के अमृत बहाने वाले शब्द को सुनकर हैमचन्द्र सेठ ने कहा-हे कान्ते ! पुण्य योग से मेरी इच्छा अब पूर्ण होने वाली है // 14 // આ પ્રમાણે ગંગાદેવીના કાનને અમૃત સમાન જણાતા શબ્દને સાંભળીને હેમચંદ્રશે કહ્યું કે હે પ્રિયે ! આપણા પુણ્યગથી મારી ઈચ્છા હવે પૂર્ણ થશે તેમ જણાય છે. 4 शुभ्रानने ! स्वप्नविलोकनं ते प्रशस्तपुत्रप्रसवं व्यनक्ति। .. इतोऽय मासे नवमे च नून मवाप्स्यसि त्वं प्रियपुत्ररत्नम् // 95 // अर्थ-हे शुभ्रानने ! तुमने जो यह स्वप्न देखा है वह "तुम एक पुत्ररत्न को जन्म दोगी" ऐसी बात को प्रकट करता है. और वह आज से ठीक नौ महीने में तुम प्रास करोगी // 15 // હે સુંદર મુખવાળી ! તમે જે આ સ્વપ્ન જોયું છે, તે “તમે એક પુત્રરત્નને જન્મ આપશે એ વાત પ્રગટ કરે છે અને તે આજથી બરોબર નવમાં મહિને તમે તે પ્રાપ્ત કરશો. 95 पत्योदितं स्वप्नफलं श्रवाभ्यां श्रुत्वा शुभं सा, श्रवणायताक्षी / जहर्ष सस्मेर मुखेन तेन विलोकिताऽसौ वलितेक्षणेन // 9 // अर्थ-वह श्रवणायताक्षी गंगा देवी पति के द्वारा कहे गये शुभ स्वप्न के फल को दोनों श्रवणों से सुनकर बडी प्रसन्न हुई // 16 // દીધું નેત્રવાળી તે ગંગાદેવીએ પતિએ કહેલા શુભ સ્વપ્નફળને બેઉકા દ્વારા સાંભવીને પોતે ઘણી જ ખુશી થયા. 9 भो ! भो ! मान्यमहोदया गुणभृतोऽद्यस्थिताः श्रूयताम, धर्मः सर्वसुखाकरो जगति वै तस्यास्ति मूलं दया। मूलेनैव समाप्यते स नियतं मत्वेति सत्वान् प्रति, कल्याणेप्सुजनैः सदेयमनुकम्पालिः किलाधीयताम् // 97 // अर्थ-यहां स्थित गुणशाली मान्य महोदयो ! सुनो संसार में नियम से ही सर्व सुखों की खान है. उसका मूल दया है. मूल से ही वह नियम से प्राप्त किया जा सकता है. अतः जो अपना कल्याण चाहने की इच्छा रखते हैं ऐसे मानवों द्वारा समस्त जीवों के प्रति यह अनुकम्पा अवश्य ही रखनी चाहिये // 9 //
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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