________________ ( 78 ) रतिदान की प्रार्थना करती थी, बच्चे डरके मारे रो रो कर भागते थे, अनार्य लोग प्रभू को चोर समझ कर ताड़ना क. रते थे, जब मूर्ति से ही ज्ञान प्राप्त होता है, तो साक्षात् को देखने पर ज्ञान के बदले अज्ञान विपरीत शान क्यों हुआ? सा. क्षात् धर्म के नायक और परम योगीराज प्रभु महावीर को देख लेने पर भी वैराग्य के बदले राग, एवं देश भाव क्यों जागृत ( पैदा ) हुए ? यह ठीक है कि जिस प्रकार पढे लिखे मनुष्य नक्शा देखकर इच्छित स्थान अथवा रेल्वे लाईन सम्बन्धी जानका. री कर लेते हैं। यानी नक्शा आदि पुस्तक की तरह ज्ञान प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं / किन्तु यदि कोई विद्वान नक्शा देख कर इच्छित स्थान पर पहुंचने के लिये उसी नक्शे पर दौड़ धूप मचावे, चित्रमय सरोवर में जल विहार करने की इच्छा से कूद पड़े, चित्रमय गाय से दूध प्राप्त करने की कोशिष करे, तब तो मूर्ति भी साक्षात् की तरह पूजनीय एवं वंदनीय हो सकती है, पर इस प्रकार की मूर्खता कोई भी समझदार नहीं करता तब मूर्ति ही असल की बुद्धि से कैसे पूज्य हो सकती है? * जिस प्रकार नक्शे को नक्शा मानकर उसकी सीमा देखने मात्र तक ही है उसी प्रकार मूर्ति भी देखने मात्र तक ही (अनावश्यक होते हुए भी ) सीमित रखिये, तब तो आप इस हास्यास्पद प्रवृत्ति से बहुत कुछ बच सकते हैं ! इसी तरह यह आप ही का दिया हुआ उदाहरण आपकी मूर्ति पूजा में बाधक सिद्ध हुआ। अतएव आपको जरा सहल ह्रदय से विचार कर सत्य मार्ग को ग्रहण करना चाहिये /