________________ 600 ] / काव्यषट्कं चिरसेवितयापि चेदिराजः सहसावाप रुषा तदैव योगम् // 6 // जनिताशनिशब्दशङ्कमुच्चै धनुरास्फालितमध्वनन्नृपेण / चपलानिल चोद्यमानकल्प क्षयकालाग्निशिखानिभस्फुरज्ज्यम् / / 7 / / समकालमिवाभिलक्षणीय ग्रहसंधानविकर्षणापवर्गः / अथ साभिसरं शरैस्तरस्त्री स तिरस्कर्तु मुपेन्द्रमध्यवर्षत् // 8 // ऋजुताफलयोगशुद्धिभाजां गुरुपक्षाश्रयिणां शिलीमुखानाम् / गुणिना नतिमागतेन सन्धिः सह चापेन समञ्जसो बभूव // 9 // अविषह्यतमे कृताधिकार वशिना कर्मणि चेदिपार्थिवेन / अरसद्धनुरुच्चकैई ढाति प्रसभाकर्षणवेपमानजीवम् // 10 // अनुसन्ततिपातिनः पटुत्वं दधतः शुद्धिभृतो गृहीतपक्षाः / वदनादिव वादिनोऽथ शब्दाः क्षितिभर्तु धनुषः शरा: प्रसस्र : // 11 // गवलासितकान्ति तस्य मध्य स्थितघोरायतबाहुदण्डनासम् / ददृशे कुपितान्तकोन्नमद् भ्रूयुगभीमाकृति कार्मुकं जनेन // 12 // 25