________________ 360 ] [ काव्यषट्कं वज जय रिपुलोकं पादपद्मानतः ___सन् गदित इति शिवेन श्लाघितो देवसंधैः / निजगृहमथ गत्वा सादरं पाण्डुपुत्रो धृतगुरुजयलक्ष्मीर्धर्मसूनुं ननाम // 48 / / // इति भारविकृतौ महाकाव्ये किराता र्जुनीयेऽष्टादशः सर्गः // 18 // // किरातार्जुनीयं महाकाव्यं सम्पूर्णम् // 3 //