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________________ 198] [ काव्यषटकं त्वदीयसेवावसरप्रतीक्षरभ्यथितः शक्रमुखैः सुरैस्त्वाम् / उपागतोऽन्वेष्टुमहं विहंगरूपेण विद्वन्समयोचितेन // 6 // इति प्रभो चेतसि संप्रधार्य तन्नोऽपराधं भगवन्क्षमस्व / पराभिभूता वद किं क्षमन्ते कालातिपातं शरणाथिनोऽमी / 10 / 5 प्रभो प्रसीदाशु सृजात्मपुत्रं यं प्राप्य सेनान्यमसौ सुरेन्द्रः / स्वर्लोकलक्ष्मीप्रभुतामवाप्य जगत्त्रयं पाति तव प्रसादात् / 11 / स शंकरस्तामिति जातवेदो विज्ञापनामर्थवती निशम्य / प्रभूत्प्रसन्नः परितोषयन्ति गीभिगिरीशा रुचिराभिरीशम् // 12 // प्रसन्नचेता मदनान्तकारः स तारकारेर्जयिनो भवाय / शक्रस्य सेनाधिपतेर्जयाय ___ व्यचिन्तयच्चेतसि भावि किंचित् // 13 // 15 युगान्तकालाग्निमिवाविषह्यं परिच्युतं मन्मथरङ्गभङ्गात् / ... रतान्तरेतः स हिरण्यरेतस्यथोर्ध्वरेतास्तदमोघमाधात् // 14 // अथोष्णबाष्पानिलदूषितान्तं विशुद्धमादर्शमिवात्मदेहम् / बभार भूम्ना सहसा पुरारिरेतःपरिक्षेपकुवर्णमग्निः // 15 // .. त्वं सर्वभक्षो भव भीमकर्मा / 20 .. , कुष्ठाभिभूतोऽनल धूमगर्भः / / .... इत्थं शशापाद्रिसुता हुताशं . रुष्टा रतानन्दसुखस्य भङ्गात् // 16 // . . दक्षस्य शापेन शशी क्षयीव प्लुष्टो हिमेनेव सरोजकोशः / 25. वहन्विरूपं वपुरुग्ररेत ___श्चयेन वह्निः किल निर्जगाम // 17 // / व्याप
SR No.004484
Book TitleKavyashatakam Mulam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages1014
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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