________________ च व्यक्तोक्तौ / संसूङ प्रमादे / कासृङ शब्दकुत्सायाम् / भासि दुभ्लासि टुभ्रासि दीप्तौ, भ्रसे बभ्रासे भ्लास्यते भ्लासते। रासृङ शब्दे / आङ शसुङ इच्छायां / ग्रसू ग्लसूङ अदने / ईंहि चेष्टायां / गर्हि कुत्सने / ऊहि तर्के / / 18 / / उपसर्गादस्योहो वात्मने // 19 // उपसर्गाहो ह्रस्वः। समुह्यात् / गाहौङ विलोडने / दक्षि वृद्धौ शैघ्ये च। शिक्षि विद्योपादाने / भिक्षि याञ्चायाम / दीक्षि मौण्डयेज्योपनयननियमव्रतादेशेषु / ईक्षि दर्शने // इत्यात्मनेपदम् // 2 // __3 // अथ भ्वादिषूभयपदम् // श्रिग सेवायाम्, अशिश्रियत् शिश्रिये / णीग् प्रापणे, अनंपीत् / हृग हरणे / भृग भरणे / धृग् धरणे / डुकृग करणे // 1 // कृगतनादेरुः / शित्ति, करोति / / 2 / / अतः शित्युत् कृगोऽविति / कुरुतः कुर्वन्ति // 3 // कृगो यि चोतो लुक् / चाद्वम्यविति, कुर्मः कुरुते // 4 // कुरुच्छरो न दीर्घः / कुर्यात // 5 // गन्धनावक्षेपसेवासाहसप्रतियत्नप्रकथनोपयोगे कृगः / आत्मने, उत्कुरुते // 6 // अधेः प्रसहने / तं हाधिचक्रे / डुयाङ् याञ्चायाप्त / डुपचीष पाके / राजग टुभ्राजी दीप्तौ, रेजतुः रराजतुः / भजी सेवायाम / रञ्जो रागे, रजति /