________________ 114 कर्तृव्यापारेऽकर्मकः // 1 // एकधातौकर्मक्रिययकाकर्मकिये (कर्मकर्त्तरिरूपे) गिक्यात्मनेपदानि, क्रियते कटः स्वयम् / / 1 // न कर्मणा मिच् योगे / अदुग्ध गौः पयः स्वयम् // 3 // स्वरदुहो वा / त्रिच्, अकृताकारि वा कटः, अदुग्धादोहि वा स्वयं गौः // 4 // णिस्नुश्यात्मनेपदाकर्मकात् / त्रिच न, पचन्तं प्रायुंक्तत्यपीपचत् प्रास्नाविष्ट, करणक्रियया क्वचित् ञ्यादीनि, परिवारयन्ते कण्टकाः स्वयं 'वक्षं // इति कर्मकर्त्तरिप्रकिया // // 1 // अयदिस्मृत्यर्थे भविष्यन्ती / भूतानद्यतने, स्मरसि साधो ! स्वर्गे स्थास्यामः // // हशश्वद्युगान्तःपृच्छये / ह्यस्तनी परोक्षा च, अगच्छत् जगाम वा किं // 2 // वाऽद्यतनी पुरादौ / अवात्सुरवसन् ऊषुर्वा पुरा छात्राः // 4 // स्मे च वर्तमाना / चात्पुरादावुपपदे, पुरा वसन्ति पृच्छति स्म / / 5 // पुरायावतोवर्तमाना / वय॑ति, पुरा भुंक्ते // 6 // कदाकोनवा / कदा भुक्ते भोक्ष्यते वा // // पञ्चम्यर्थहेतो वा / आगच्छति सूरिरनुयोगमादत्स्व / / 10 / / सत्सामीप्ये सद्वद्वा / भूते भविष्यति च, अयमागच्छामि // 9 // संभावने / साध्यासिद्धावपि, समये चेत्प्रयत्नोऽभूदुद्भवन् विभूतयः / / 10 // भूतक्रियातिपतौ / सप्तम्यर्थे