________________ 98 हिंसाकरणयोः, कृणोति / धिवु गतौ, धिनोति / / इति परस्मैपदं // ____ अशौङ् व्याप्तौ, आक्षीत् आनशे // इति स्वा. दयष्टितः // 4 // // 5 // तुदादयः // तुदी व्यथने // 1 // तुदादेः शः / शिति, तुदति / भ्रस्जी पाके // 2 // ग्रहवृश्चभ्रस्जप्रच्छः / क्ङिति वृत , भृजति // 3 // भृजो भ वाऽ / शिति, बभर्ज बभ्रज बभर्छ भृज्ज्यात भी / क्षिपी प्रेरणे, अक्षैप्सीत् / मिल संगमे / मुच्ल मोक्षे / / 4 // मुचादितृफहफगुफशुभोभः शे / नोऽन्तः स्वरात्, मुञ्चति अमुचत् / षिची क्षरणे / विदल लाभे, विन्दति / लुप्ल छेदे / लिपी उपचये, लिम्पति / / इत्युभयपदं / / - कृत छेदने, कृन्तति कतिष्यति कर्त्यति / खिद खेदे, खेत्ता // इति मुचादिः / / ... मृ प्राणत्यागे // 1 // म्रियतेरद्यतन्याशिषि चात्मनेपदं / चाच्छिति, म्रियते ममरतुः अमृत मृषीष्ट / क क्षेपे / // 2 // किरो लवने / उपात् स्सडादिः // 3 // प्रतेश्च बधे // 4 / / अपाश्चतुष्पादपक्षिशुनि हृष्टानाश्रयार्थे / 5 / अपस्किरः / आत्मने, अपस्किरते चकरतु: अकारीत् / गृ निगिरणे // 6 // नवास्वरें। ग्रो रो ल:,