________________ 262 प्राकृतशब्दरूपावलिः || श्रीरस्तु // . . ॥श्रीगुरवे नमः // ॥गुर्जरवाक्यानां प्राकृतम् // भादोभ हतार ओने प्रिय न होय - अस्सिं लोगम्मि दाया कस्स पिओ ण होइ। श्री.तिने हेमाडपाम साक्षात् हीपीछे-इत्थी दुग्गइदंसणम्मि सक्खं दीवियत्थि। . रामो मने रातो 52252 युद्ध ४२वा वाया - रायाणो चिलाआ य परुप्परं जुद्धं काउमाढत्ता / योगिमो भेश योगनी उपासना 72 छ- जोगिणो सइ जोगस्सुवासणं कुणन्ति / . रात्रिमे ५६ीमी भानामा 23 छ,- रत्तीए पक्खिणो नीडम्मि वसन्ति / ॐ हुं हुं ते तुं सim - जमहं कहेमि तं तुं सुणसु / भारी गुत पात ओऽने 59 नवी- मम गुज्झा वत्ता कस्स वि ण कहणिज्जा। ते उन्या भारी बहेन छ - सा कन्ना मह बहिणी होइ। भा२i पुस्तयांछे-. मह पुत्थआई कुत्थ सन्ति / भएi भाई रायतने माछ- एहि मइ रज्जं तुह अप्पेमि / तरी संगन ४२वो मे // 29 // तुं पापीछे - तुह संगो ण कायव्वो जओ तुवं पावोसि। तुं नाय 514 34. 3 छ - तुम णीयकम्मं कहं कुणसि / सत्य मानि अनुसरेछे ते यतीने पामेछे-जे सच्चमग्गमणुसरंति ते विभूइं पावंति।