________________ प्राकृतशब्दरूपावलिः 239 संबोधनम् / हे कत्त हे कत्तार प्रथमावत् / हे कत्तारो . . . ॥अथ पितृशब्दः // एकवचनम् बहुवचनम् प्रथमा पिआ पिअरो / पिऊ पिउणो पिअउ [पिअओ पिअवो पिअरा, द्वितीया पिअरं पिऊ पिउणो पिअरे पिअरा तृतीया पिउणा पिअरेणं पिअरेण (पिऊहिं पिऊहि पिऊहिँ (पिअरेहिं पिअरेहि पिअरेहिँ पञ्चमी / पिउणो पिऊओ पिऊउ / पिऊओ पिऊउ पिऊहिन्तो पिऊहिन्तो पिअरत्तो | पिऊसुन्तो पिअरत्तो पिअराओ पिअराउ |पिअराओ पिअराउ पिअराहि पिअराहिन्तो | पिअराहि पिअरेहि पिअरा पिअराहिन्तो पिअरेहिन्तो पिअरासुन्तो पिअरेसुन्तो षष्ठी (पिउणो पिउस्स इपिऊणं पिअराणं पिअरस्स .. (पिऊण पिअराण सप्तमी (पिउम्मि पिअरम्मि पिऊसुं पिअरेसुं पिअरे संबोधनम् हे पिअ हे पिअरं प्रथमाबहुवचनवत् // आ सौ नवा // 8 / 3 / 48 // इत्यनेन ऋतः सौ परे आकारो वा / नाम्न्यरः / / 8 / 3 / 47 // इत्यनेन ऋतः संज्ञायां स्यादौ परे अर इत्यादेशः / / ऋतामुदस्यमौसु वा / / 8 / 3 / 44 // इत्यनेन संज्ञायामुकारो न विहितस्तथापि ऋतामिति बहुवचनस्य व्याप्त्यर्थत्वात् संज्ञायामपि वा भवति // ऋतोऽद्वा / / 8 / 3 / 39 //