________________ ॐ हीं श्री अहँ नमः देव द्रव्यादि व्यवस्था विचार वीतरागसपर्याया-स्तवाज्ञा-पालनं परं। आज्ञाऽऽसद्धा विराद्वा च शिवाय च भवाय च। कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य भगवन्त श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजा वीतराग परमात्मा की स्तवना करते हुए फरमाते है कि हे वीतराग परमात्मा! आपकी पूजा की अपेक्षा से आपकी आज्ञा पालन करना श्रेष्ठ है। क्योंकि आज्ञा का आराधन मोक्ष के लिए होता है और आज्ञा का विराधन संसार के लिए होता है। जिनेश्वर भगवान के शासन में पूजादि धर्म क्रियाओं से जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा का महत्व ज्यादा है। पूजादि धर्मक्रियायें जिनाज्ञा के अनुसार की जावे तो वे संसार सागर से पार कर मोक्ष में पहुँचाने वाली बनती है जिन धर्म-क्रिया में जिनाज्ञा का अनुसरण नहीं वे धर्म क्रिया संसार वृद्धी का कारण बनती है आज्ञा का आराधनं मुक्ति का कारण है और आज्ञा का विराधन संसार का कारण है अतः हरेक आराधक को प्रत्येक धर्म क्रिया में जिनाज्ञा का अनुसरण अनिवार्य है। देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य की व्यवस्था करना यह भी एक