________________ इस पुस्तक के प्रकाशन मे उदार दिल मुमुक्षरत्न सुश्रावक शांतिलालजी जावरावालोने शुभ प्रेरणा को पाकर अपनी भगवती प्रवज्या के अनुमोदन निमित्त अपने द्रव्य का सद्व्यय करके पुण्य लाभ लीया! . __“देवद्रव्यादि व्यवस्था विचार" नाम के इन पुस्तको का प्रचार मध्यप्रदेश राजस्थानादि देशोमे विपुल प्रमाणसे हुआ फीरभी गांव गाव में यह पुस्तके नहीं पहुंची क्योकी मात्र हजार प्रति ही उसकी छपी थी। वाचक वर्गकी मांग चालु ही चालु रही इस कारण वापीस उसकी . दुसरी आवृत्ति के प्रकाशन करनेका प्रसंग आया. इस “देवद्रव्यादि व्यवस्था विचार" नाम के पुस्तक की दुसरी आवृत्ति के प्रकाशन करने मे प्रवचनकार संयमरत्न मुनिराज श्री भुवनरत्न विजयजी मा. सा. के. सदुपरदेशसे श्री पाश्वनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट के आराधक भाईयोने अपने द्रव्यका प्रदान करके सहयोग देनेका अपुर्व पुण्य लाभ लीया। इस छोटेसे पुस्तक में मंदिरादि धर्म स्थानोका तथा देव द्रव्यादि धर्म द्रव्यका वहीवट कैसे करना इस बात पर थोडासा प्रकाश डाला है। अत: इस पुस्तक को पढकर प्रत्येक वहिवटदार श्रावक देवद्रव्यादि की व्यवस्था शास्त्राज्ञाकी मर्यादामे रह कर करने की कालजी रखे ताकि वहीवट करते संसारमे डुबना न हो आत्माका आहेत न होवे इस पुस्तकका पूरे ध्यान से वांचन करके शास्त्र मर्यादा मुताविक वहीवट करके उत्तरोत्तर सद्गति तथा परमपद के भोक्ता बनो यही अन्तिम शुभाभिलाषा! लि. विचक्षणसूरी