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________________ है! इसीलिए शास्त्र में कहा गया है कि चढ़ावादि के पैसे तुरंत ही चुका दो, लंबना है तो . ब्याज सहित चुकाओ तो आपको धन व्यय का सच्चा लाभ मिलेगा। तुरंत पैसे दे देने में एक लाभ यह भी है कि बोली बोलकर लहावा लेने के वक्त में अमाप उत्साह होने के वजह उसी समय में ही पैसे दे देनेमें अपूर्व कोटिका पुण्यबन्ध होता है। लेकिन उसी समय पैसे न दिये जाएं, पैसे देने में विलम्ब किया जावे तो पीछे पैसे देने में उत्साह मंद पड़ आता है और उत्साह का भंग भी हो जाता है बिना उत्साह से पैसे भरपाइ करे तो पुण्य बन्ध में भी भारी मन्दता आ जाती है इसलिए हरेक पुण्यवान श्रावको की शास्त्राज्ञानुसार फरज है कि बोली बोलते ही पैसे भरपाई कर देना या विलम्ब से भरपाई करना होवे तो ब्याज सहित भरपाई करना चाहिए जिससे अच्छे पुण्य बन्ध के भागीदार बन सके। अपने यहां पुण्यवान उदारताशील ऐसे श्रावक हो गये कि चढ़ावे बोलकर तुरन्त ही पैसे भरपाई करते थे महामंत्रीश्वर पेथडशाने गीरनार तीर्थ के दिगम्बर के साथ विवाद में इन्द्र माल को पहिनकर गीरनार तीर्थ जैन श्वेताम्बर की मालिकी का करने के लिए 56 धडी सोने का सद्व्यय करके चढ़ावा लिया था वह 56 धडी सोना भरपाई करने के लिए ऊंटडिओ, पर अपने घर से सोना लाने के लिए अपने आदमीओं को भेजे थे क्युकि सोना न आवे वहां तक अन्नपाणी न लेना
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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