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________________ 43 हालाहल विष का भक्षण अच्छा है परन्तु देव द्रव्य का भक्षण करना अत्यन्त अनुचित है क्योंकि विष थोडे समय के लिए दुःखदायी होता है लेकिन देवद्रव्य का भक्षण तो जनम जनम में दु:खदायी होता है। देव द्रव्य के नाश का इतना भयंकर पाप है कि उस पाप को निवारण करने की जबाबदारी साधु आदि सकल संघ के ऊपर शास्त्रकारों ने रखी है। महानीशथ सूत्र में तो ऐसा कहा है कि - "किसीने देव द्रव्य का भक्षण किया होवे और अनेक उपायों से समझाया जावे फिर भी वह शक्ति सम्पन्न होने पर भी देव द्रव्य संघ में भरपाइ न करें तो साधु जहां से राजा का आना जाना होवे ऐसे स्थान पर धूपादि में आतापना ले। राजा आतापना लेते साधु को देख प्रसन्न हों जावे और पूछे महाराज ऐसे गाढे धूप में आप क्युं तपते ही आपको क्या चाहिए तब साधु कहे हमको कुच्छ भी नहीं चाहिए लेकिन आपके नगर में अमुक आदमी देव द्रव्य खा गया है। बहोत से उपायों से समझाने पर भी नहीं देता है। आप राज हो। आप उसके पास से मंदिर के पैसे दिलादो जिससे मंदिर को नुकसान न होवे वह आदमी भी पाप में न डूबे।" __देवद्रव्य का जिसने भक्षण किया होवे अथवा जिसके पास देव द्रव्य का लेना बाकी होवे तो किसी भी उपाय से
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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