________________ चलती रहती है इस बात का सूचनं करने वाला यह शास्त्र पाठ है स च देवद्रव्यादिभक्षको महापापोपहतचेता मृतोऽपि नरकं सानुबन्धदुर्गति व्रजेत्। और भी कहा है कि = अग्निदग्धाःपादपा जलसेकादिना प्ररोहंति पल्लवयंति। परं देवद्रव्यादिविनाशोग्रपापपावकदग्धो नरः समूलदग्धद्रुमवन् न पल्लवयति प्रायः सदैव दुःखभावत्वेन पुनर्नवो न भवति। दिगम्बरों के ग्रन्थ में भी कहा है कि - वरं दावानले पात: क्षुधया वा मृतिवरं। मूर्ध्नि वा पतितं वज्रं न तु देवस्वभक्षणं। / / वरं हालाहलादीनां भक्षणं क्षणदुःखदं। निर्माल्यभक्षणं चैव दु:खदं जन्मजन्मनि।। दावानल में पड़ना अच्छा भूखे मरना अच्छा माथे में वज्र (शस्त्र) के घा पड़े तो भी अच्छा लेकिन देव द्रव्य का भक्षण करना कोई रीति से अच्छा नहीं।