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________________ मनु० देवव्यना संबंधमां बीजी सूचनाओ. 1 श्रावके देवद्रव्य अंग उधार के मकान या घरेणा विगेरे उपर गीरो तरीके व्याजे लेवू नहीं. कारणके स्थितिना फेरफारे कदी देवू रही जाय तो पछी संबंधादि कारणथी श्रावकभाइयो कही शके नहीं, मागी शके नहीं अने डुबी जवानो वखत आवे. 2 देरासरमां मुकायेल फळ नैवेद पैकी जे राखी मुकवाथी बगडे नहीं तेवां श्रीफळ, सोपारी, बदाम, पतासां, साकर विगेरे तो वेचवामां आवे छे ने तेनुं उत्पन्न द्रव्यमां जाय छे, परंतु तिथि पर्वादिके या महोत्सवादि प्रसंगे ज्यारे पुष्कळ फळ नैवेद चडाक्वामां आव्यु होय त्यारे गोठी, भोजक, माळी विगेरे जे प्रभुनी भक्तिना करनारा के तेनी सारी संख्या होय तो आपी देवं. नहीं तो योग्य माणसने वेचीने तेर्नु उत्पन्न देवद्रव्यमां नाखवं, श्राम श्राद्धविधिमा लेख छे, परंतु ज्यां शासननी हीलना तेम करवाथी थाय तेम होय त्यां वेचवू नहीं, पण वेचाय तेवू न होवाना कारणथी योग्य अयोग्य जे होय तेने अथवा पोताना वगवाळाने आपq नहीं, विचारपूर्वक योग्य व्यवस्था करवी. 3 चोखाना भंडारनी अंदर चोखा विगेरे थोडा आवेल होय के पधारे आवेल होय पण दर मासे आवश्य भंडार खोली काढी लइ वेचवा विगेरे व्यवस्था करी नाखती, वधारे मुदत राखवाथी घणी वखत अंदर जीवोत्पत्ति थाय छे अने काढतां तेनो विनाश थाय छे, माटे जीव यतना बराबर थाय तेवू लक्ष वहीवटकर्ताओए अवश्य राख.
SR No.004476
Book TitleDevdravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sakarchandji
PublisherMohanlal Sakarchandji
Publication Year1917
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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