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________________ सेवगी मुनि महाराजने अथवा सुज्ञ श्रावकोने वांचवा पण आपता नथी अने पोते तो कर्मदोषथी बुद्धिहीण ज होय छे तेथी तेनो उपयोग अगर संभाळ करी शकता नथी, तेथी केटलाक वर्षे तेवां ताळा वाशी राखेला भंडारोमांना पुस्तको सडी जइ तेनो नाश थइ जाय छे, अर्थात् उपयोगमा आवे तेवां रहेतां नथी. माटे आ बाबतमा भंडार करावनाराओए अगाउथीज आगळ उपर सारी रीते बंदोबस्त रहेवा माटे अने जे कार्यने माटे भंडार करवामां आवे छे ते कार्य सफळ थवा माटे व्यवस्था करी राखवी जोइए. प्रसंगोपात उजमणां तथा ज्ञानना भंडारो विगेरे बाबतो उपर लक्ष जवाथी मूळ विषय जे देवद्रव्यनो छे ते पडयो रहेलो छे. जो के ते विषयो पण देवद्रव्यनी जेवा अने तेनी साथे संबंध धरावनारा छे. ज्ञानद्रव्य, गुरुद्रव्य तथा साधारण द्रव्यनी बाबतमा पण शास्त्रकारे देवद्रव्यनी जेवाज गुणदोष कहेला छे, परंतु अहीं देवद्रव्यनी बाबतमांज वधारे कहेवानी जरुर होवाथी ते बाबतज विशेषे करीने लखेली छे. 12 श्रीसंबोधसित्तरी नामे प्रकरणमा कयुं छे के:जिणपवयणवुद्धिकरं, पभावगं नाणदंसणगुणाणं। रख्खंतो जिणदव्वं, तिथ्थयरत्तं लहइ जीवो। ... अर्थ-जिन प्रवचननी वृद्धि करनार अने ज्ञान दर्शन गुणनो
SR No.004476
Book TitleDevdravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sakarchandji
PublisherMohanlal Sakarchandji
Publication Year1917
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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