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________________ है, उसी तरह देवद्रव्य का भक्षणादि करनेवाला भी धोर पापी है। देवद्रव्य के भक्षणादि का ऐसा घोर पाप है कि देवद्रव्यादि का भक्षणादि करने वाले को इस जन्म में भी दरिद्रतादि की भयंकरयातनाएं भोगनी पडती हैं और जन्मान्तर में दुर्गतियों के चक्कर में अनन्त अनन्त बार घूमना पडता है / अनन्तान्त असह्य दुःख भोगने पड़ते हैं। मन्दिर के दीपक से अपने घर का काम करने वाली देवसेन श्रेष्ठि की माँ की क्या दशा हुई ? उसकी जानकारी के लिए उपदेश प्रासाद, श्राद्ध विधि आदि ग्रन्थों में उसका दृष्टान्त आता है - इन्द्रपुर नगर में देवसेन नाम के धनाढ्य सेठ रहते थे। हररोज उसके घर एक उंटडी आती थी। उसको बेडीया मार-मार के अपने घर ले जाता था, लेकिन वह उंटडी वापस देवसेन सेठ के घर पर आ जाती थी। यह देखकर देवसेन श्रेष्ठि को बडा आश्चर्य हुआ। एक दफे ज्ञानी गुरु भगवन्त पधारे। उनसे देवसेन श्रेष्ठि ने पूछा 'भगवन् यह उंटडी बार-बार मेरे घर पर क्यों आ जाती 20E
SR No.004475
Book TitleSavdhan Devdravya Vyavastha Margadarshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherKumar Agency
Publication Year1994
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size3 MB
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