________________ um maaamanaSENIORamr दो दिन के उपवास हुए / तीसरे दिन पेढी में 56 धडी सोना चुकाकर पारणा किया | यह बात खास याद रखने जैसी है, और याद रखकर जीवन में अमली बनाने जैसी है। जो बोली बोलो वह दुरन्त दे दो। हो सके तो बोली बोलने वालों को पैसे जेब में लेकर ही आना चाहिए। उघाई करने के लिए मुनिम वगेरे वहीवट करने वालों को रखने पडे, यह रीत योग्य नहीं है। इसमें शाहुकारी नही रहती है | बोली के पैसे तुरन्त देना यह पहली शाहुकारी है, देने में विलंब करते हुए भी यदि ब्याज बजार भाव का देवे तो भी ठीक है। स्वयं लेवे दो टका और देवे एक टका ब्याज, तो देवद्रव्य का एक रूपया खा जाने का दोष लगता है। चढावे की रकम तुरन्त न देने में कभी अकल्पित बनाव भी बन जाते हैं। श्रीमंताई पुण्य के अधीन है। पुण्य खतम हो जावे और पाप का उदय जागृत हो जावे तो बड़ा श्रीमंत भी एकदम दरिद्री बन जाता है। लक्ष्मी चली भी जाती है, जिंदगी तक जीवन जीने में भी कठिनाईयां भोगनी पडती हैं। ऐसी अवस्था में धर्मादा द्रव्य का देना कैसे चुकावे ? अन्त में कर्जदार बनकर 17