________________ ( 44 ) नाणं उसहाईणं, पुवण्हे पच्छिमण्हि वीरस्स / (ज्ञानवेला) // 95 / / सत्वेसि पि अठारस, न हुंति दोसा इमे ते अ // .190 // ज्ञानमृषभादीनां, पूर्वाह्नपश्चिमाह्नि वीरस्य // सर्वेषामप्यष्टादश, न सन्ति दोषा इमे ते च // 190 // पंचेव अंतराया, मिच्छत्तमनाणविरई कामो / हासछग रागदोसा, निद्दा द्वारस इमे दोसा // 191 / / पञ्चैवान्तरया-मिथ्यात्वाऽज्ञानमविरतिः कामः / हास्यादिषड्रागद्वेषौ, निद्राऽष्टादशेमे दोषाः // 191 / / हिंसाइतिगं कीला, हासाईपंचगं चउकसाया / मयमच्छरअन्नाणा, निद्दा पिम्मं इअ च दोसा // 192 // हिंसादित्रिकंक्रीडा, हास्यादिपञ्चकं 'चतुष्कषायाः। मदमत्सरमज्ञानं, निद्राप्रेमेति च दोषाः // 192 // जम्मप्पभिई चउरो, जिणाण इक्कार घाइकम्मखओ। सुरविहिअइगुणवीसं, चउतीसं अइसया उ इमे // 193 // जन्मप्रभृतिचत्वारो-जिनानामेकादशघातिकर्मक्षयात् / सुरविहितैकोनविंशति-श्चतुस्त्रिंशदतिशयास्त्विमे // 193 // सेअमलामयरहियं, देहं सुहगंघरूवसंजुत्तं / निविस्समबीभच्छं, गोखीरनिहं रुहिरमंसं // 194 // स्वेदमलाऽऽमयरहितो-देहः शुभगन्धरूपसंयुक्तः / निर्विस्रमबीभत्सं, गोक्षीरनिभं रुधिरमांसम् // 194 / /