________________ ( 34 ) शून्यं पञ्चदशपञ्चतत-त्रिशून्यं राज्यश्च चक्रिकालोऽपि / शान्तिकुन्थ्वराणां, शेषाणां नास्ति चक्रित्वम् // 141 // बंभंमि किन्हराई-अंतरठियनवविमाणवत्थव्वा / अट्ठयराऊ भवा, लोयंतसुरा इअभिहाणा // 142 // ब्रह्मणि कृष्णराज्य-न्तरस्थितनवविमानवास्तव्याः / अष्टसागरायुभव्या-लोकान्तसुरा इत्यभिधानाः // 142 // सारस्सय माइच्चा, वहि वरुण गद्दतोय तुसिआ य / अवाबाह अगिवा, रिट्ठा बोहिंति जिणनाहे // 143 // सारस्वता आदित्या-वन्हिवरुणगदतोयतुषिताश्च / अव्याबाधाऽऽग्नेया-रिष्टा बोधन्ति जिननाथान् // 143 // दिणि दिति जिणा कणगे-गकोडि अड लक्ख पायरासं जा। तं कोडितिसय अडसी, असीइलक्खा हवइ वरिसे // 144 // दिने ददति जिनाः कनकैक-कोट्यष्टलक्षाः प्रातराशं यावत् / तत्कोटित्रिशतमष्टाशीति-रशीतिलक्षा भवति वर्षे // 144 / / जम्मं व मासपक्खा, नवरं सुवयस्स सुद्धफग्गुणिओ। नमिवीराण वयंमी, कसिणा आसाढमग्गसिरा // 145 // जन्मवन्मासपक्षाः-परन्तु सुव्रतस्य शुद्धफाल्गुनिकः / नमिवीरयोव्रते, कृष्णावाषाढमार्गशीर्षों // 145 // अट्ठमि 1 नवमी 2 पुन्निम, 3 दुर्दसि 4 नवमि 5 तेरसी तिगं 8 छट्ठी 9 / बारसि 10 तेरसि 11 पनरसि 12,