________________ पिंडविसोही समिई, भावण पडिमा य इंदियनिरोहो / पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु // 867 // असढेण समाइन्न, जं कत्थइकारणे असावज्जं / न निवारिअमन्नेहिं अ, बहुमणुमयमेअमायरिअं // 868 // गीअत्थो अ विहारो, बीइओ गीअत्थमिसिओ भणिओ / एत्तो तइअविहारो, नाणुन्नाओ जिणवरेहिं / / 869 // गीअं भण्णइ सुत्तं, अत्थो पुण होइ तस्स वक्खाणं / सुत्तेण य अत्थेण य, गीअत्थं तं विआणाहि // 870 // जो देह उवस्सयं, जइवराण गुणसयसहस्सकलिआणं / तेणं दिन्ना वत्थन्न-पाणसयणासणविगप्पा / / 871 / / पावइ सुरनररिद्धी, सुकुलुप्पत्तीय भोगसामिद्धी / नित्थरई भवमऽगारी सिज्जादाणेण साहूणं / / 872 / / अरिहंत-सिद्ध-चेइय-तव-सुअ-गुरू-साहु-संघ पडिणीओ बंधइ दंसणमोहं, अगंतसंसारिओ जेणं // 873 / / जो जेण सुद्धधम्ममि ठाविओ संजएण गिहिणा वा। सो चेव तस्स जायइ, धम्मगुरू धम्मदाणाओ / / 874 / / अद्धामलगपमाणे, पुढविकाए रवलियाले सीवा ते पारेवयमित्ता, जंबुद्दीवे न मागत, 75 एगंमि उदगविदुंमि, जे जीवा जिणोति पाना / ते जइसरिसवमित्ता, जंबुद्दीवे न मायंति // 876 / / वरंटतंदुलमित्ता, तेउकाए हवंति जे जीवा / ते जइ खसखसमित्ता, जंबुद्दीवे न मायति / / 877 / /