________________ 77 जम्मंतीए- सोगो, वड्ढंतीए य वड्ढए चिंता / परिणीयाए दंडो, जुवइपिआ दुक्खिओ निच्च // 803 // जो जाणइ जस्स गुणे, लोए सो तस्स आयरं कुणइ / फलिए ढक्खारामे, काओ लिंबोहलिं चुणइ // 804 // रयणायरस्स न हु होइ तुच्छिमा, निग्गएहिं रयणेहिं / तहवि हु चंदसरिच्छा, विरला रयणायरे रयणा // 805 // संसारो न दुरुत्तरो सिवसुहं, पत्तं करंभोरुहे / जे सम्म जिणधम्मकम्मकरणे, वटुंति उद्धारया / / 806 / / ववसायफलं विहवो, विहवस्स फलं सुपत्तविणिओगो / तयभावे ववसाओ, विहयो वि अ दुग्गइनिमित्तं // 807 / / तक्कविहूणो विज्जो, लक्खणहीणो अ पंडिओ लोए / भावविहूणो धम्मो, तिन्नि वि नूणं हसिज्जति / / 808 // तं रुवं जत्थ गुणा, तं मित्तं जं निरंतरं वसणे / सो अत्थो जो हत्थे, तं विन्नाणं जहिं धम्मो // 809 // जीअं मरणेण समं, उप्पज्जइ जुव्वणं सह जराए / रिद्धी विणाससहिआ, हरिसविसाओ न कायब्वो // 810 // अवगणइ दोसलक्खं, इक्कं मन्नेइ जं कयं सुकयं / सयणो हंससहावो, पिअइ पयं वज्जए नीरं // 811 / / संतगुणकित्तणेण वि, पुरिसा लज्जति जे महासत्ता / इअरा अध्पस्स पसंसणेण, हियए न मायंति // 812 // संतेहिं असंतेहिं अ, परस्स किं जंपिएहिं दोसेहिं / अच्छो जसो न लब्भइ, सो वि अमित्तो कओ होइ // 813 //