________________ 1 . जिणपूआ गुरुसेवा, दाणे तव नियम सील सम्भावे / नाणे दंसण चरणे जइयव्वं दससु ठाणेसु // 522 / / जत्थ साहम्मिआ बहवे, सीलवंता बहुस्सुया / चरित्तायारसंपन्ना, आययणं तु वियाणाहि // 523 // माणुस्समुत्तमो धम्मो, गुरुनाणाइ संजुओ / सामग्गी दुल्लहा एसा, जाणाहि हिअमप्पणो // 524 // धम्मस्स दया मूलं, खती वयाण सयलाणं / विणओ गुणाण मूलं, दप्पो मूलं विणासस्स // 525 // कम्ममसंखिज्जभवं, खवेइ अणुसमयमेवमाउत्तो / अन्नयरम्मि वि जोगें, सज्झायम्मि विसेसेण // 526 // अइरोसो अइतोसो, अइहासो दुज्जणेहि संवासो / अइउन्भडो अ वेसो, पंच वि गुरुअंपि लहुअंति // 527 // पत्तेयं पत्तेयं कम्मफलं, नियममणुहवंताणं / / को कस्स जए सयणो, को कस्स परजणो एत्थ // 528 // निरवज्जाहाराणं साहूणं निच्चमेव उवधासो / उत्तरगुणवुड्ढिकए, तह वि हु उववासमिच्छंति // 529 / / उवलद्धो जिणधम्मो, न य अणुचिण्णो पमायदोसेण / हा जीव ! अप्पवेरिय सुबहुं पुरओ विसुहिसि // 530 / , पंच नमुक्कारो खलु, विहिदाणं सत्तिओ अहिंसा य / इदियकसाय विजओ, एसो धम्मो सुहपओगो // 531 // रूद्दो खलु संसारो, सुद्धो धम्मो उ ओसहमिमस्स / गुरुकुलसंवासे सो, निच्छयओ णायमेत्तेण // 532 //