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________________ 50 सव्वरयणामएहिं विभूसिअं, जिणहरेहि महीवलयं / जो कारिज्ज समग्गं, तो वि चरणमहिज्जीयं // 511 // नागमकारणबंधु, नाणं मोहंधयारदिणबंधु / नाणं संसारसमुई, तारणे बंधुरं जाणं // 512 // पावाओ विणिवत्ती, पव्वत्तणा तहयं कुसलपक्खम्मि / विणयस्स य पडिवत्ती, तिन्नी वि नाणे समप्पंति // 513 // केसिंचि होइ चित्तं, वित्तं अन्नेसि उभयमन्नेसिं / . चित्तं वित्तं पतं, तिन्निधि केसिंचि धन्नाणं // 514 // जो देवाण वि पुज्जो, भिक्खानिरतो वि सील संपन्नो / पुहइवई वि कुसीलो, परिहरणिज्जो बुहयणस्स // 515 // विसयाउरेहिं बहुसो सीलं, मणसा वि मइलियं जेहिं / ते निरयदुहं दुसहं, सहति जह मणिरहो राया // 516 / / पायाले सुरलोए, नरलोए वा वि नत्थि तं कज्जं / जीवाण जं न सिज्झइ, तवेण विहिणाऽणुचिन्नेण // 517 // विसमं पि समं सभयपि निभयं दुज्जणो य सुयणोव्व / सुचरिततवस्स मुणिणो, जायइ जलणो वि जलनिवहो // 518 // जह धन्नाणं पुहई, आहारो नहयणं च ताराणं / तह नीसेसगुणाणं, आहारो होइ सम्मत्तं // 519 // चउरंगो जिणधम्मो, न को चउरंग सरणमवि न कयं / चउरंग भवुव्वेओ, न कओ हारिओ जम्मो // 520 / / दाणं दरिदस्स पहुस्स खती, इच्छा निरोहो य सुहोइयस्स / तारुण्णये इंदियनिग्गहो य, चचारि एयाई सुदुक्कराई // 521 //
SR No.004473
Book TitlePaia Subhasiya Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyadarshanvijay
PublisherPadmavijay Ganivar Jain Granthmala
Publication Year1987
Total Pages124
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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