________________ संसारो। WORLD खणदिट्ठनद्वविहवे, खणपरियट्टन्तविविहसुहदुक्खे / खणसंजोयविओगे, संसारे रे सुह कत्तो // 315 // कालम्मि अणाईए, जीवाणं विविहकम्मवसगाणं / तं नत्थि संविहाण, संसारे जं न संभवइ // 316 // ही संसारसहावा-चरियं नेहाणुरागरत्ता वि। जे पुवण्हे दिट्ठा, ते अवरण्हे न दीसंति // 317 // एयं करेमि एण्हि, अयं काऊण पुण इमं कल्लं / काहामि को णु मन्नइ, सुविणयतुल्लम्मि जियलोए // 318 // नारयतिरियनरामर, भवेसु हिण्डन्तयाण जीवाणं / जम्मजरामरणभए, मोत्तूण किमत्थि किंचि सुह // 319 // कि अत्थि नारगो वा, तिरिओ मणुओ सुरो व संसारे / सो कोइ जस्स जम्ममरणाइन होन्ति पावाई // 320 // तेहि गहियाण य कह, होइ रई हरिणतणयाण व / कूडयपडियाण दर्द, वाहेहि विलुप्पमाणाणं // 321 // केण ममेत्थुप्पत्ती कहिं इओ तह पुणोवि गन्तब। जो एत्तियपि चिंतेइ एत्थ सो को न निविण्णो // 322 // भयरोगसोगविप्पओगबहुदुक्खजलणपज्जलिए / नडपेच्छणयसमाणे, संसारे को धिइ कुणइ // 323 // बंधवा सुयणा सव्वे, पियमायापुत्तभारिआ / पेयवणाउ नियत्तंति, दाऊण सलिलंजलिं // 324 //