________________ 31 संपत्थियाण परलोगमेगसत्थेण सत्थियाणं व / / जइ - तत्थ कोवि पुरओ, वच्चइ भयकारणं किमिह // 305 // जीयमणिच्चमवस्स मरणंति मणमि निच्छओ जस्स / सूणायारपसुस्स व, का आसा जीविए तस्स // 306 // जस्स मयस्सेगयरो, सग्गो मोक्खो व होइ नियमेण / मरणंपि तस्स नरवर, ऊसवभूयं मणूसस्स // 307 // न वि जुद्ध न पलायं, कयन्तहत्थिम्मि अग्घइभयं वा / न य से दीसइ हत्थो, गेण्हइ य दढं अमोक्खो य // 308 // जह वा लुणाइ सासाइ कासओ परिणयाई कालेण / इय भूयाइ कयन्तो, लुणाइ जायाई जायाई // 309 // जइ ताव मच्चुपासा, सच्छन्दसुहं सुरेसु वियरन्ति / अञ्चन्तमणोयारो, जत्थ जरारोगवाहीग // 31 // किं पुण वाहिजरारोगसोगनिच्चुदुयम्मि माणुस्से / मच्चुस्स सो पमाओ, जं जियइ. नरो निमेसपि // 311 // : जहेह सीहो व मिगं गहाय, मच्चू नर नेइ हु अन्तकाले / न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मि सहरा भवंति // 312 // सो को वि नत्थि जीवो, तिलोयमझमि जो वसं न गओ। मच्चुस्स पावमइणो, मोत्तुं सिद्धे सुहसमिद्धे // 313 // जुज्जइ काउं सोगो, मरण जइ होज्ज कस्स एगस्स / साहारणम्मि मरणे, को सोगो किं वरुन्नेण // 314 //