________________ विसया विसं बसहर वाघाणसमा दारुण मुणेऊण 14 . कुसग्गे जह ओसबिंदुए, थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए / एवं मणुआग जीवियं, समयं गोयम ! मा पमायए // 135 // कीलसि कियन्तवेलं, ससीरवावीसु जत्थ पइसमयं / / कालरहघडीहिं, सोसिज्जइ जीवियं मोहं // 136 // विसया / SENSIAL PLEASURES विसया विसं व विसमा, विसया वेसानरब्य दाहकरा / विसया पिसायविसहर वाघाणसमा ‘मरणहेऊ // 137 // तो भे भणामि सावय-विसयसुहं दारुण मुणेऊण। चवलतडिविलसियं पिव, मणुयत्त भंगुरं तहय // 138 // सुयणसमागमसोक्खं; चवलं जोवण पिय असारं / सोक्खनिहाण मि सया, धम्मम्मि मई दढं कुणसु // 139 // महुबिंदुसमे भोए, तुच्छे परिणामदारुणे धणियं / इय वसणसंकडगओ, विबुहो कह महइ. भोत्तुं जे // 140 // हरिहरचउराणणचंदसूरइंदाइणो वि जे देवा / . . नारीण किंकरतं, करंति धिद्धी विसयतण्हा // 141 // कह कच्छूली कच्छू, कंडुयमाणो दुहं मुणइ सोक्खं / मोहाउरा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं बिति // 142 // दुक्खं सुहं ति मन्नइ, जीवो विसयामिसेसु अणुरत्तो / पुनरवि बहु विनडिओ, न मुणइ आउं परिगलन्तं // 143 // जह कमलेव महुयरो, आसत्तो तहय कामगयचित्तो / महिलाणुरागरत्तो, किं न कुणइ साहसं पुरिसो // 144 / /