________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम् अध्यात्मगम्यो गम्यात्मा, योगविद्यो योगिवन्दितः / सर्वत्रग: सदाभावी त्रिकालविषयार्थदृक् / / 88 / / शङ्करः शंवदो दान्तो दमी शान्तिपरायणः / अधिप: परमाणन्दः परात्मज्ञः परावरः / / 89 / / त्रिजगद्वल्लभोऽभ्यर्च्यस्त्रिजगन्मङ्गलोदयः। त्रिजगत्पतिपूज्यांह्निखिलोकाग्रशिखामणिः // 10 // त्रिकालदर्शी लोकेशो, लोकधाता दृढव्रतः। सर्वलोकातिग: पूज्य: सर्वलोकैकसारथिः // 11 // पुराणपुरुष: पूर्वः, कृतपूर्वाङ्गविस्तरः। आदिदेवः पुराणाद्यः, पुरादेवोऽधिदेवता // 92 / / युगमुख्यो युगजेठो, युगादिस्थितिदेशकः / कल्याणवर्ण: कल्याणकल्प: कल्याणलक्षण: / / 93 / / कल्याणप्रकृतिर्दीप्रः कल्याणात्मा विकल्मषः / विकलङ्कः कलातीत: कलिविघ्नकलाधरः // 94 // देवदेवो जगन्नाथो, जगद्वन्धुर्जगद्विभुः। जगद्धितैषी लोकज्ञः, सर्वगो जगदग्रगः // 95 // चराचरगुरुर्गोप्यो, गूढात्मा.गूढगोचरः / सद्योजात: प्रकाशात्मा, ज्वलज्ज्वलन: सुप्रभः // 16 // आदित्यवर्णो भर्गाभः, सुप्रभः कनकप्रभः / सुवर्णवर्णो रुक्भाभः, सूर्यकोटिसमप्रभः // 97|| तपनीयनिभस्तुङ्गो, बालार्काभोऽनलप्रभः।। सन्ध्याभूबभूर्तेमाभस्तप्तचामीकरच्छविः / / 98 // 170