________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम् प्रभावो यस्य स तथा // 661 // "विमल:" 662 इति / विगतो मल:-मायालक्षणो यस्य सः // 662 / / "विमलद्युति:" 663 इति / विमला-परतेजोभिरनभिभूता द्युति:-दीप्तिर्यस्य स तथा // 663 // "विमन्युः" 664 इति / विगतो मन्यु:-क्रोधो यस्मात् स तथा। विविधा मन्यवः-यज्ञा यस्मादिति वा, तत्प्रवर्तकत्वात् / 'मन्यु: क्रोधे क्रतौ दैत्ये॥' इति विश्वः // 66 // "विमर्षी " 665 इति / विशेषेण भक्तागसो मर्षितुं-क्षन्तुं शीलमस्य स तथा // 665 // "विनिद्रः" 666 इति / विगता निद्रा यस्मात् स तथा, सर्वदा जागरूकत्वात् // 666 // "विराजः" 667 इति / विशिष्टा राजानो यस्मात् स तथा // 667 / / "विराड्" 668 इति / विशेषेण राजते इति सः // 668 / / "बृहस्पति:" 669 इति / बृहतां-महतां पतिः बृहस्पति:, निपातनात् साधुः // 669 // "बृहत्कीर्तिः" 670 इति / बृहती कीर्तिर्यस्य यस्माद् वा स तथा // 670 // "बृहत्तेजाः" 671 इति / तेजोऽन्तरापेक्षया बृहद्-महत् तेजो यस्य स तथा // 671 // * 'वरदः" 672 इति / वरं-प्रधानं ददातीति वरदः / दुष्टानां वरं-प्रधानं द्यति खण्डयतीति वा / / 672 / / "वरदाता" 673 इति / वरं-प्रसादं ददातीति वरदाता / 'वरोऽभीष्टे देवतादेर्वरो जामातृशिङ्गयोः // ' इति विश्वः / / 673 / / .."वृद्धिः" 674 इति / वर्धनं-वृद्धिः, तद्धेतुत्वात् / / 674 // 114