________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे बज्झ अभितरं उवहिं, सरीराइ सभोयणं / . . . मणसा वय-काएहिं, सव्वं भावेण वोसिरे // 19 // सव्वं पाणारभं, पञ्चक्खामित्ति अलियवयणं च / सव्वमदिन्नादाणं, मेहुन्न परिग्गरं चेव // 20 // सम्मं मे सव्वभूएस, वेरं मज्झ न केणइ / आसाओ वोसिरित्ता णं, समाहिमणुपालए // 21 // रागं बध पओसं च, हरिसं वीणभावयं / उस्सुगत्तं भयं सोगं, रई अरई च वोसिरे // 22 // ममत्तं परिवजामि, निम्ममत्तं उवढिओ। ... आलंबणं च मे आया, अवसेसं च वोसिरे // 23 // आया हु महं नाणे, आया मे दंसणे चरित्ते य / . आया पञ्चक्खाणे, आया मे संजमे जोगे |24|| एगो वञ्चइ जीवो, एगो चेवुववजए। .. एगस्स चेव मरणं, एगो सिज्झइ नीरओ // 25 / / एगो मे सासरो अप्पा, नाणदंसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा // 26 // संजोगमूला जीवेण, पत्ता दुक्खपरंपरा / .. तम्हा संजोगसंबंध, सव्वं तिविहेण वोसिरे // 27 // मूलगुणे उत्तरगुणे, जे मे नाराहिया पमाएणं / तमहं सव्वं निंदे, पडिक्कमे आगमिस्साणं // 28 // सत्त भए अट्ठ मए, सन्ना चत्तारि गारवे तिन्नि। . आसायण तित्तीसं, रागं दोसं च गरिहामि // 29 // .