________________ 159 . भवभावना (8) vNNNNN जो पढइ सुत्तओ सुणइ अत्थओ भावएय अणुसमयं / सो भवनिव्वेयगओ पडिवज्जइ परमपयमग्गं // 526 // न य वाहिजइ हरिसेहिं नेय विसमावईविसाएहिं / भावियचित्तो एयाएँ चिट्ठए अमयसित्तोव्व // 527 // उवयारो य इमीए संसारासुइकिमीण जंतूणं / जायइ न अहव सव्वण्णुणोऽवि को तेसु अवयासो ? // 528 / / तो अणभिनिविट्ठाणं अत्थीणं किंपि भावियमईणं / जंतूग पगरणमिणं जायइ भवजलहिबोहित्थं // 529 / / एगतीसाहियपंचहिं सएहिं गाहा-विचित्तरयणेहिं / सुत्ता गुगया वररयणमालिया निम्मिया एसा // 530 / / भुवणम्मि जा वियरइ जिणधम्मो ताब संव्वजीवाणं / भवभावणवररयणावलीइ कीरउ अलंकारो // 531 //