________________ श्रुतरत्नरत्नाकर 152 . 011 // जहजह दोसोवरमो जह जह विसएसु होइ वेरगं / तह तह विन्नायव्वं आसन्नं से य परमपयं // 449 // एत्थ य विजयनरिंदो चिलायपुत्तो य तक्खणं चेव / संवरियासवदारत्तणम्मि जाणेज दिटुंता // 450 // कणगावलि रयणावलि मुत्तावलि सीह कीलियप्पमुहा। होइ तवा निजरणं चिरसंचिय पावकम्माणं // 451 // जह जह दढप्पइन्नो वेरग्गगओ तवं कुणइ जीवो। तह तह असुहं कम्मं सिज्जइ सीयं व सूरहयं // 452 // नाणपवणेण सहिओ सीलुज्जलिओ तवोमओ अग्गी। दवहुयवहोव्व संसारविडविमूलाई निदहइ // 453 // दासोऽहं भिञ्चोऽहं पणओऽहं ताण साहुसुहडाणं / तवतिक्खखग्गदंडेण सूडियं जेहिं मोहबलं / / 454 // मइलम्मि जीवभवणे विइन्ननिभिन्न संजम कवाडे / दाउं नाणपईवं तवेण अवणेसु कम्ममलं // 455 / / तवहुयवहम्मि खिविऊण जेहिं कणगं व सोहिओ अप्पा / ते अइमुत्तय कुरुदत्तपमुहमुणिणो नमसामि // 456 // धन्ना कलत्तनियलाई भंजिउ पवरसत्तसंजुत्ता। वारीओ व्व गयवरा घरवासाओ विणिक्खंता // 457 // धन्ना घरचारयबंधणाओ मुक्का चरंति निरसंगा। जिणदेसियं चरित्तं सहावसुद्धेण भावेण // 458 // धन्ना जिणवयणाई सुणंति धन्ना कुणंति निसुयाई / धन्ना पारद्धं ववसिऊण मुणिणो गया सिद्धिं // 459 //