________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे वियराल वज्जकंटयभीममहासिंबलीसु य खिवंति। .. पलवंते खरसदं खरस्सरा निरयपालत्ति // 119 // पसुणो व्व नारए वहभएण भीए पलायमाणे य / महघोसं कुणमाणा रुंमंति तहिं महाघोसा // 120 // तह फालियावि उक्कत्तियावि तलियावि छिन्नभिन्नावि / दड्ढा भुग्गा मुडिया य तोडिया तह विलीणा य // 121 // पावोदएण पुणरवि मिलंति तह चैव पारयरसोव्व / इच्छंतावि हु न मरंति कहवि हु ते नारयवराया // 122 // पभणंति तओ दीणा मा मा मारेह सामि! पहु! नाह!। अइदुसहं दुक्खमिणं पसियह मा कुणह एत्ताहे // 123 // एवं परमाहम्मियपाएसु पुणो पुणोऽवि लग्गति / दंतेहिं अंगुलीओ गिण्हंति भणंति दीणाई // 124 // तत्तो य निरयपाला भणंति रे अज दूसहं दुक्खं / जइया पुण पावाई करेसि तुट्ठो तया भणसि // 125 // णत्थि जए सव्वन्नू अहवा अहमेव एत्थ सव्वविऊ / अहवावि खाह पियह य दिट्ठो सो केण परलोओ ? // 126 // नस्थि व पुण्णं पावं भूयऽभहिओ य दीसइ न जीवो / इच्चाइ भणसि तइया वायालत्तेण परितुह्रो // 127 // मंसरसम्मि य गिद्धो जइया मारेसि निग्घिणो जीवो। भणसि तया अम्हाणं भक्खमियं निम्मियं विहिणा // 128 // वेयविहिया न दोसं जणेइ हिंसत्ति अहव जंपेसि / .. चरचरचरस्स तो फ़ालिऊण खाएसि परमंसं // 129 // .