________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे 118 भिन्नते भावाणं उवयारऽवयारभावसंदेहे / .. किं सयणेसु ममत्तं ? को य पओसो परजणम्मि ? // 75 // पवणोव्व गयणमग्गे अलक्खिओ भमइ भववणे जीवो / ठाणे ठाणम्मि समज्जिऊण धणसयणसंघाए // 76 // जह वसिऊणं देसियकुडीइ एक्काइ विविहपंथियणो।। वञ्चइ पभायसमए अन्नअन्नदिसासु सव्वोऽवि // 77 / / जहवा महल्लरुक्खे पओससमए विहंगमकुलाई। वसिऊण जंति सूरोदयम्मि ससमीहियद्रिसासु // 78 // अहवा गावीओ वणम्मि एगओ गोवसन्निहाणम्मि / चरिउं जह संझाए अन्नन्नघरेसु वञ्चंति // 79 // इयकम्मपासबद्धा विविहट्टाणेहिं आगया जीवा / वसिउं एगकुडुम्बे अन्नन्नगईसु वञ्चति // 80 // इय अन्नत्तं परिचिंतिऊण घरघरणिसयण पडिबंधं / मोत्तूण नियसहाए धणोव्व धम्मम्मि उज्जमसु // 81 / / नारयतिरियनरामरगईहिं चउहा भवो विणिहिट्ठो। तत्थ य निरयगईए सरूवमेवं विभावेजा // 82 // रयणप्पभाइयाओ एयाओ तीइ सत्त पुढविओ। सब्वाओ समंतेणं अहो अहो वित्थरंतीओ // 83 // तीस पणवीस पनरस दसलक्खा तिन्नि एग पंचूणं / पंच य नरगावासा चुलसीइलक्खाई सव्वासु // 84 // . तेणं नरयावासा अंतो वट्टा बहिं तु चउरंसा। .. हेट्ठा खुरुप्प संठाणसंठिया परमदुग्गंधा / / 85 // .