________________ 98 श्रुत रत्नरत्नाकरे खुद्दोति अगंभीरो उत्ताणमई न साहए धम्मं / ' सपरोवयारसत्तो अक्खुद्दो तेण इह जोग्गो // 8 // संपुन्नंगोवंगो पंचिंदियसुंदरो सुसंघयणो। होइ पभावणहेऊ खमो य तह रूववं धम्मे // 9 // पयईसोमसहावो न पावकम्मे पवत्तई पायं / हवइ सुहसेवणिज्जो पसमनिमित्तं परेसिपि // 10 // इहपरलोयविरुद्धं न सेवए दाणवियसीलड्ढो। लोअप्पिओ जणाणं जगेइ धम्ममि बहुमाणं // 11 // कूरो किलिट्ठभावो सम्मं धम्म न साहिउ तरह / इय सो न एत्थ जोगो जोगो पुण होइ अक्कूरो // 12 // इहपरलोगावाए संभावेंतो न वट्टई पावे / , बीहइ अयसकलंका तो खलु धम्मारिहो भीरू // 13 // असढो परं न वंचइ वीससणिज्जो पसंसणिज्जो य / उज्जमइ भावसारं उचिओ धम्मस्स तेणेसो // 14 // उवयरइ सुदक्खिन्नो परेसिमुझिय सकज्जवावारो। . तो होइ गझवको गुवत्तणीओ य सव्वस्स // 15 // लज्जालुओ अकज्ज वजइ दूरेण जेण तणुयंपि / आयरइ सयायारं न मुयइ अंगीकयं कहवि // 16 // मूलं धम्मस्स दया तयणुगये सव्वमेवणुट्ठाणं / सिद्धं जिणिदसमए मग्गिज्जइ तेणिह दयालू // 17 // मज्झत्थसोमदिट्ठी धम्मवियारं जहट्ठियं मुणइ / कुणइ गुणसंपओगं दोसे दूरं परिश्चयइ // 18 //