________________ // 756 // // 757 // // 758 // // 759 // // 760 // // 761 // नामनाम्ना स्ववीर्यं च, शरीरे मम दर्शितम् / तथा गोत्रान्तरायाभ्यां, स्वस्वकार्येविनाटितः रौद्रातध्यानकलुषः; कृतो दुष्टाभिसन्धिना / अन्यैरपि बलं मोहभटैः स्वं स्वं प्रदर्शितम् अथायातो नितान्तं मां, कदर्थयितुमन्यदा / महामोहमहीशकसमीपे मकरध्वजः तुष्टो मोह: समायातं, तं दृष्ट्वा सपरिच्छदम् / सोऽपि तदर्शनात् तुष्टः, शिखीव घनदर्शनात् गन्धेभ इव सन्नद्धो, महामोहस्तदन्वितः / विधाय विषयैरन्धं, मामत्यन्तमपीडयत् मग्नो भोगपुरीषेऽहं, ततो रात्रिंदिवं स्थितः / . भूयसाऽपि न कालेन, तृप्ति, समपद्यत भोगेनैव च भोगानां, वृद्धा मे भोगतृष्णिका / तस्यामौर्वानले साधूपदेशोऽम्भ इवाभवत् . ततः सदागमो नष्टः, सिद्ध्यन्ति च मनोरथाः / मम पुण्योदयस्तत्र, हेतुर्बुद्धो मया न सः ततो विधूय निखिलं, राज्यकार्य दिवानिशम् / स्त्रैणमन्तःपुरगतं, भुञ्जानोऽहं मुदा स्थितः तथा या या. मया दृष्टा, कुलजाऽकुलज़ाऽथवा / सुंरूपा स्त्री समाकृष्य, सा सा स्वान्तःपुरे धृता गणितं न मया पापं, कलङ्कं ददता कुले / निवारकाणां वचनं, मन्त्रिणामप्युपेक्षितम् ततो में बान्धवा हीणा, मदुश्चरितवीक्षिणः / विरकाः सर्वसामन्ता, निविण्णं चाखिलं पुरम् 175 // 762 // // 763 // // 764 // // 765 // // 766 // // 767 //