________________ // 1483 // // 1484 // // 1485 // // 1486 // // 1487 // // 1488 // योगेश्वरी मदभ्यर्णमायातोऽथ भटान्वितः / शैलराजमृषावादधृष्टं मां स निरीक्षत उत्प्रासनपरैः षिङ्गैर्वेष्टितं मां मुखेऽथ सः / योगेश्वर(रो)योगचूर्णमुष्ट्या निहतवान् भृशम् तत्प्रभावात् क्षणेनाभूत्, प्रकृतेर्मे विपर्ययः / महागह्वरगस्येव, जाता हृदयशून्यता ताडितोऽहं ततस्तेन, संजातं मे महद्भयम् / पतितस्तत्पदे दीनो, नष्टः पुण्योदयस्तदा शैलराजमृषावादौ, तिरोभूतौ ततः कृतः / तन्मनुष्यैर्यथा जातो, मषीपुण्ड्रकचर्चितः कृततालारवैस्तैश्च, रासमध्येऽवतारितः / प्रवृत्ता नाट्यन्तो मां, रासं दातुं त्रितालकम् गाढपार्णिप्रहारैर्मा, निघ्नन्तो रासकुण्डके / निन्युश्चक्रिसभां रासं, ददानास्ते त्रितालकम्. विशिष्य नाटयामासुधुवकोच्चारपूर्वकम् / . पादेषु पातयन्तो मां, सर्वेषां, तत्र ते मुहुः जातं प्रहसनं भूरि, प्राप्तुं योग्योऽयमीदृशीम् / दशामिति प्रवृत्तश्च, जनवादः पदे पदे . ततोऽहं नाटितो बाढं, प्रणमन्त्रन्त्यजानपि.। उन्मादादवशो जातस्तपनेन च भूभुजा राज्ये मे स्थापितो भ्राता, कनिष्ठः कुलभूषणः / गाढपाष्णिप्रहारैश्चापतद् रक्तं ममोदरे जीर्णैकभववेद्याऽथ, गुटिकाऽन्या ममार्पिता / भवितव्यतया नीतः, सप्तमं नरकं ततः ..... 255 // 1489 // // 1490 // // 1491 // // 1492 // // 1493 // // 1494 //