________________ लोलाक्षेण गृहीता च, वन्येभेनेव हस्तिनी / विमोच्य तत्करं तेन, धावन्ती सा पुनधुता // 828 // पुनर्विमोच्य साऽऽत्मानं, प्रविष्टा चण्डिकागृहे / अथ प्रादुरभूद् द्वेषगजेन्द्रो राजशासनात् // 829 // स्वडिम्भरूपैः सहितः, प्रकर्षेण निरैक्षि सः / विमर्शः प्राह वत्सास्य, साम्प्रतं पश्य चेष्टितम् // 830 // ततो द्वेषगजेन्द्रेण, लोलाक्षः समधिष्ठितः / दध्यौ खड्गेन हन्म्येनां, या मां त्यक्त्वा पलायिता // 831 // प्रविष्टः खड्गमुद्यम्य, चण्डिकायतनेऽथ सः / चण्डिका तेन तबुद्ध्या, मदान्धेन विदारिता // 832 // बहिनिरीयाथ रतिललिता कृतपूत्कृतिः / तां वार्ता कथयामास, विबोध्य रिपुकम्पनम् // 833 // तेनापि द्वेषनागेन्द्राधिष्ठितेन प्रियागिरा / सतिरस्कारमाहूतो, लोलाक्षो दुष्टचेष्टितः // 834 // जातः कोलाहलो भूयान्, सन्नद्धं निखिलं बलम् / .. अयुद्ध्यन्तान्धयुद्धेन, सुरोन्मत्ता मिथो भटाः // 835 // द्विपैर्द्विपा हयास्ताक्ष्यरुष्ट्रैरुष्ट्राः खराः खरैः / चूर्णिताः शतशस्तत्र, कातरैरपि कातराः // 836 // अकाण्डबहुसंमर्दोस्थितशोणितधारया / तदा बभूव मद्येन, तर्पिता चण्डिकेव भूः // 837 // लग्नौ द्वौ खड्गयुद्धेन, लोलाक्षरिपुकम्पनौ / जघानाथ महाक्रोधालोलाक्षं रिपुकम्पनः // 838 // विमर्शश्च प्रकर्षश्च, दृष्ट्वा तं घोरविप्लवम् / प्रविष्टौ नगरे तत्र, स्थितौ स्थाने भयोज्झिते // 839 // 200