________________ // 84 // // 86 // // 87 // // 88 // // 89 // विमलीकुरुते विश्वं, यशस्तस्य पटूभवेत् / अमृतीस्याद्विश्वमपि, पुण्यं यस्य विजृम्भते सौत्राः कण्ड्वादयोऽन्दोलण, प्रेढोलणप्रमुखा अपि / आत्मोभयपरपदा,-दथवा धातवस्त्रिधा ङनुबन्ध इदनुबन्धः, कर्तर्यप्यात्मनेपदी धातुः / .. ईगनुबन्धस्तूभयपदी, परस्मैपदी शेषः सर्वेभ्योऽपि हि धातुभ्यो, दश त्यादिविभक्तयः / . वर्तमाना सप्तम्याद्याः, स्युराख्यातप्रकीर्तिताः तत्रादिमाश्चतस्रः स्युः, शित्संज्ञा अशितः पराः / प्रत्येकं वचनान्यष्टा,-दश सर्वासु तास्वपि दशानामपि पूर्वाणि, वचनानि नवैव हि / परस्मैपदसंज्ञानि, प्रत्ययौ च शतृक्वसू ' वचनानि नवान्त्यानि, कानानशौ च प्रत्ययौ / आत्मनेपदमेते च, योज्येते धात्वपेक्षया . वर्तमाने वर्तमाना, विधिमार्गे च सप्तमी / क्रियाऽऽदेशे पञ्चमी च, कालेऽतीतेऽग्रगं त्रयम् स्मयोगे वर्तमानाऽपि, आशिष्याशी: सपञ्चमी / भाविकाले चाग्रिमे द्वे, क्रियापाते तथाऽन्तिमा . नदी वहति तिष्ठन्ति, शैलाः पाति नृपः प्रजाः / दानं दद्यात् तपः कुर्यात् पालयेच्छीलमार्हतः वत्सागच्छास्स्व सिद्धान्तं, शृणु संवृणु मानसम् / शृणोतु साधुवर्गोऽयं, स्वाध्यायं करवाण्यहम् जिनोऽर्थमवदत्सूत्र,-मकाएंगणधारिणः / प्रससार च सिद्धान्त,-स्तं पठन्ति स्म साधवः // 90 // // 91 // // 92 // // 93 // // 94 // // 95 // R