________________ // 3 // // 4 // श्री वर्धमानक्रमकमलोपजीविश्रीचक्रेश्वरसूरिविरचितम् ॥सूक्ष्मार्थसप्ततिप्रकरणम् // सिद्धो बुद्धो अणंतो बंभो सोमो सिवो गुरू तवणो।। भयवं सिरिरिसहजिणो अणाइनिहणो चिरं जयउ कृत्वाऽन्त्यपदस्य कृति शेषपदे द्विगुणमन्त्यमभिहन्यात् / उत्सार्योत्सार्य पदाच्छेषं चोत्सारयेत् कृतये // 2 // सदृशद्विराशिघातो रूपादिद्विचयपदसमासेवी / ग्राह्यो नयुतवधो वा(?) तदिष्टवर्गानितो वर्ग: विषमात्पदतस्त्यक्त्वा वर्गस्थानच्युतेन मूलेन / द्विगुणेन भजेच्छेषं लब्धं विनिवेशयेत्पङ्क्त्याम् तद्वगर्ग संशोध्य द्विगुणीकुर्वीत पूर्ववल्लब्धम् . / उत्सार्य ततो विभजेच्छेषं द्विगुणीकृतं दलं यत् विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वट्टस्स परिरओ होइ / विक्खंभपायगुणिओ परिरओ तस्स गणियपयं परिही तिलक्ख सोलस य सहस्स दो य सय सत्तवीसहिया / कोसतियं धणुहसयं अडवीस तेरंगुलद्धहियं सत्तेव य कोडिसया नउया छप्पन्न सयसहस्साई / चउणउयं च सहस्सा संयं दिवटुं च साहियं गाउयमेगं पन्नरस धणु सया तह धणूणि पन्नरस / सढि च अंगुलाई जंबुदीवस्स. गणियपयं // 9 // एगा जोयणकोडी लक्खा बायाल तीसइसहस्सा / समयक्खेतपरिरओ दो चेव सया अउणपन्ना // 10 // सोलस कोडीलक्खा नवकोडिसया तिकोडि लक्खेगं / पणवीससहस्साइं गणियपयं समयखेत्तस्स . // 11 // 259 // 6 // // 7 // // 8 //