________________ // 690 // // 691 // // 692 / / // 693 // // 694 // // 695 // वामबाहुस्थिते दूते समनामाक्षरो जयेत् / / दक्षिणाबाहुगे त्वाज़ौ विषमाक्षरनामकः भूतादिभिर्गृहीतानां दष्टानां वा भुजङ्गमैः / विधिः पूर्वोक्त एवासौ विज्ञेयः खलु मान्त्रिकैः पूर्णा संजायते वामा विशता वरुणेन चेत् / कार्याण्यारभ्यमाणानि तदा सिध्यन्त्यसंशयम् जयजीवितलाभादिकार्याणि निखिलान्यपि / निष्फलान्येव जायन्ते पवने दक्षिणास्थिते ज्ञानी बुध्द्वाऽनिलं सम्यक् पुष्पं हस्तात्प्रपातयेत् / मृतजीवितविज्ञाने ततः कुर्वीत निश्चयम् त्वरितो वरुणे लाभश्चिरेण तु पुरन्दरे / जायते पवने स्वल्पः सिद्धोऽप्यग्नौ विनश्यति आयाति वरुणे यातः तत्रैवास्ते सुखं क्षितौ / प्रयाति पवनेऽन्यत्र मृत इत्यनले वदेत् दहने युद्धपृच्छायां युद्धभङ्गश्च दारुणः / / मृत्युः सैन्यविनाशो वा पवने जायते पुनः महेन्द्रे विजयो युद्धे वरुणे वाञ्छिताधिकः / / रिपुभङ्गेन सन्धिर्वा स्वसिद्धिपरिसूचकः भौमे वर्षति पर्जन्यो वरुणे तु मनोमतम् / पवने दुर्दिनाम्भोदौ वह्नौ वृष्टिः कियत्यपि वरुणे सस्यनिष्पत्तिरतिश्लाघ्या पुरन्दरे / मध्यस्था पवने च स्यान्न स्वल्पाऽपि हुताशने महेन्द्रवरुणौ शस्तौ गर्भप्रश्ने सुतप्रदौ / समीरदहनौ स्त्रीदौ शून्यं गर्भस्य नाशकम् . . 120 // 696 // // 697 // // 698 // // 699 // // 700 // // 701 //