________________ दक्षिणेन विनिर्यान्तौ विनाशायानिलानलौ / निःसरन्तौ विशन्तौ च मध्यमावितरेण तु // 522 // इडा च पिङ्गला चैव सुषुम्णा चेति नाडिकाः / / शशिसूर्यशिवस्थानं वामदक्षिणमध्यगाः // 523 // पीयूषमिव वर्षन्ती सर्वगात्रेषु सर्वदा / वामाऽमृतमयी नाडी सम्मताऽभीष्टसूचिका // 524 // वहन्त्यनिष्टशंसित्री संही दक्षिणा पुनः / सुषुम्णा तु भवेत् सिद्धिनिर्वाणफलकारणम् -- // 525 // वामैवाभ्युदयादीष्टशस्तकार्येषु सम्मता / ' दक्षिणा तु रताहारयुद्धादौ दीप्तकर्मणि // 526 // वामा शस्तोदये पक्षे सिते कृष्णे तु दक्षिणा / त्रीणि त्रीणि दिनानीन्दुसूर्ययोरुदयः शुभः // 527 // शशाङ्केनोदये वायोः सूर्येणास्तं शुभावहम् / उदये रविणा त्वस्य शशिनास्तं शिवं मतम् .. // 528 // सितपक्षे दिनारम्भे यत्नेन प्रतिपदिने / वायोर्वीक्षेत संचारं प्रशस्तमितरं तथा . // 529 // उदेति पवनः पूर्वं शशिन्येष व्यहं ततः / संक्रामति त्र्यहं सूर्ये शशिन्येव पुनस्त्र्यहम् // 530 // वहेद्यावद् बृहत्पर्व क्रमेणानेन मारुतः / कृष्णपक्षे पुनः सूर्योदयपूर्वमयं क्रमः // 531 // त्रीन् पक्षानन्यथात्वेऽस्य मासषट्केन पञ्चता / पक्षद्वयं विपर्यासेऽभीष्टबन्धुविपद्भवेत् / // 532 // भवेत्तु दारुणो व्याधिरेकं पक्षं विपर्यये / द्विव्याद्यहविपर्यासे कलहादिकमुद्दिशेत् // 533 // 112