________________ नो सरसि कहं छित्ता परिसंभित्ता अणुट्ठियाइ कहे। संथारपायघट्टण चिट्ठोच्चसमासणे यावि . // 131 // पुरओ अग्गपएसे पक्खे पासम्मि पच्छ आसन्ने। गमणेण तिन्नि ठाणेण तिन्नि तिण्णि य निसीयणए // 132 // विणयब्भंसाइगदूसणाउ आसायणाओ नव एया। सेहस्स वियारगमे रायणिय पुव्वमायमणे // 133 // पुव्वं गमणागमणालोए सेहस्स आगयस्स तओ। राओ सुत्तेसु जागरस्स गुरुभणियऽपडिसुणणा // 134 // आलवणाए अरिहं पुव्वं सेहस्स आलवेंतस्स। .. रायणियाओ एसा तेरसमाऽऽसायणा होइ // 135 // असणाईयं लद्धं पुव्विं सेहे तओ य रायणिए। आलोए चउदसमी एवं उवदंसणे नवरं - // 136 // एवं निमंतणे वि य लड़े रयणाहिगेण तह सद्धिं / असणाइ अपुच्छाए खद्धंति बहुं दलंतस्स .. // 137 / / संगहगाहाए जो न खद्धसद्दो निरूवीओ वीसुं। . तं खद्धाइयणपए खद्ध त्ति विभज्ज जोएज्जा। // 138 // एवं खद्धाइयणे खद्धं बहुयं ति अयणमसणं ति / आईसद्दा डायं होइ पुणो पत्तसागंतं // 139 // वन्नाइजुयं उसढं रसियं पुण दाडिमंबगाईयं / मणईटुं तु मणुन्नं मन्नइ मणसा मणामं तं // 140 // निद्धं नेहवगाढं रुक्खं पुण नेहवज्जियं जाण। एवं अप्पडिसुणणे नवरिमिणं दिवसविसयम्मि // 141 / / खद्धति बहु भणंते खरकक्कसगुरुसरेण रायणियं / आसायणा उ सेहे तत्थ गए होइमा चऽण्णा // 142 // 12