________________ आऊ तेऊ वाऊ एसिं सरीराणि पुढविजुत्ताणि / दीसंति वणसरीरा जीवा असंख संखिज्जा // 498 // अह अयधंतो गोलो जाओ तत्ततवणिज्जसंकासो। सव्वो अगणिपरिणओ निगोयजीवे तहाऽणंते // 499 // जह गिरिवराण मेरू सुराण इंदो गहाण जह चंदो। देवाणं जिणचंदो तह धम्माणं च सम्मत्तं // 500 // सम्मद्दिट्ठी जीवो गच्छइ नियमा विमाणवासीसु। जइ न विगयसम्मत्तो अहव न बद्धाउओ पुव्वं // 501 // ते धन्ना ताण नमो तं चिय चिरजीविणो बुहा ते उ। जं निरइयारमेयं धरति सम्मत्तवररयणं / // 502 // लब्भइ सुरसामित्तं लब्भइ पहुअत्तणं न संदेहो / इक्कं नवरि न लब्भइ दुल्हं रयणसम्मत्तं // 503 // पयमक्खरं पि इक्कं जो न रोएइ सुत्तनिद्दिटुं। सेसं रोयंतो वि हु मिच्छद्दिट्टी जमालि व्व // 504 // सव्वेसि जीवाणं अणारियजणेण हणियमाणेणं / जहसत्तीए वारण अभयं तं बिति मुणिपवरा // 505 // पंचमहव्वयपरिपालणाणं पंचसमिईहिं समिआणं / तिगुत्ताण य वंदिय साहूणं दाणमुत्तमयं . // 506 // मंदाण य टुंटाण य दीणअणाहाण अंधबहिराणं / * अणुकंपादाणं पुण जिणेहि न कहिंचि पडिसिद्धं // 507 // उच्चियदाणं एवं वेलमवेलाइ दाण पत्ताणं / तं दाणं दिनेणं जिणवयणपभावगा भणिया // 508 // जिणसाहुसाहुणीण य सुकित्तिकरणेण भट्टबडुआणं / जं दाणं तं भणियं सुकित्तिदाणं मुणिवरेहि // 509 // 180