________________ // 3 // // 4 // अञ्चलगच्छीय पू.आ.श्रीहर्षनिधानसूरिसंगृहीत: * ॥रत्नसञ्चयः // नमिऊण जिणं वीरं उवयारद्धा गुरुं च सीसं च / सिद्धांतसारगाहा भणामि जे रयणसारिच्छा // 1 // नवकारइक्कअक्खर पावं फेडेइ सत्त अयराइं / पन्नासं च पएणं सागरपणसय समग्गेणं // 2 // जो गुणइ लक्खमेगं पूएइ विहीए जिणनमुक्कारं / तित्थयरनामगोअं सो पावइ सासयं ठाणं अद्वैव य अट्ठ सया अट्ठ सहस्सं च अट्ठ कोडीओ। जो गुणइ नमुक्कारं सो तइयभवे लहइ मुक्खं जं छम्मासिय-वरिसिय-तवेण तिव्वेण झिज्झए पावं / नवकार अणाणुपुव्वी गुणणेण तह खणद्धेण / वाहिजलजलणतक्कर-हरिकरिसंगामविसहरभयाई / नासंति तक्खणेणं जिणनवकारप्पभावेणं // 6 // जिणसासणस्स सारो चउद्दसपुव्वाण जो समुद्धारो। जस्स मणे नवकारो संसारो तस्स किं कुणई एसो मंगलनिलओ भयविलओ सयलसंघसुहजणओ। नवकार परममंतो चिंतिअमित्तं सुहं देई // 8 // अप्पुव्वो कप्पतरू चिंतामणिकामकुंभकामगवी / जो झायई सयलकालं सो पावइ सिवंसुहं विउलं // 9 // पंचनमुक्कारमंतं अंते सुच्चंति वसणपत्ताणं / सो जइ न जाइ मुक्खं अवस्स वेमाणिओ होइ // 10 // विमलगिरि मुत्तिनिलओ. सत्तुंजो सिद्धिखित्त पुंडरीओ। हरिसिद्धसिहरो सिद्धि-पव्वओ सिद्धराओ अ // 11 // . 145 // 7 //