________________ // 659 // // 660 // // 661 // // 662 // आणाभिण्णट्ठाणे इच्छंता जक्खपमुहसाहज्जे। पायं धम्मपभट्ठा णो धम्माराहगा हुंति .. . न य किंचि पडिसिद्धं सव्वं सव्वप्पयारओ समए। उस्सग्गाइविवक्खा दक्खा कहमण्णहा होइ ? तम्हा सव्वाणुण्णा सव्वनिसेहो अपवयणे नत्थि। आयं वयं तुलिज्जा लाहाकंखि व्व वाणिअओ तेणं भगवइठाणयअविरोहो होइ सम्मदिट्ठीणं / तित्थुइओ खलु तित्था बज्झो बज्झाण बज्झाउ एवं खलु तित्थुइओ मूलुस्सुत्तेण वण्णिओ इहयं / सेसमुवएसपमुहं पुण्णिमसरिसं मुणेअव्वं एवं कुवक्खकोसिअसहस्सकिरणम्मि उदयमावण्णे। . चक्खुप्पहावरहिओ कहिओ सो सडपुण्णिमिओ नवहत्थकायरायकिअसममहिमम्मि चित्तसिअपक्खे। गुरुदेवयपुण्णुदए सिरिहीरविजयसुगुरुवारे इअ सासणउदयगिरि जिणभासिअधम्मसायराणुगयं / पाविअ पभासयंतो सहस्सकिरणो जयउ एसो // 663 // // 664 // // 665 // // 666 // 414