________________ 4 / 2 / 9 5 / 1 / 10 61 / 11 6 / 2 / 12 71 / 13 7 / 2 / 14 अवरे उ अणत्थ परंपरा उ पावेंति पापकम्मवसा / संसारसागरगया गोमाउग्ग सियकुम्मो व्व सिढिलियसंजमकज्जा वि होइउं उज्जमंति जइ पच्छा। संवेगओ तो सेलउ व्व आराहया होति जह मिउलेवालित्तं गरुयं तुंबं अहो वयइ एवं / आसवकयकम्मगुरु जीवा वच्चंति अहरगयं तं चेव तब्विमुक्कं जलोवरि ठाइ जायलहुभावं / जह तह कम्मविमुक्का लोयग्गपइट्ठिया होति . जह सेट्ठी तह गुरुणो जह णाइजणो तहा समणसंघो। जह वहुया तह भव्वा जह सालिकणा तह वयाई जह सा उज्झियनामा उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा / पेसणगारितेणं असंखदुक्खक्खणी जाया तह भव्वो जो कोई संघसमक्खं गुरुविदिन्नाई। पडिवज्जिउं समुज्झइ महव्वयाई महामोहा . सो इह चेव भवम्मि जणाण धिक्कारभायणं होइ / परलोए उ दुहत्तो नाणाजोणीसु संचरइ जह वा सा भोगवती जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा / पेसणविसेसकारितणेण पत्ता दुहं चेव तह जो महव्वयाई उवभुंजइ जीवियत्ति, पालितो / आहाराइसु सत्तो चत्तो सिवसाहणिच्छाए सो एत्थ जहिच्छाए पावइ आहारमाइ लिंगि त्ति / विउसाण नाइपुज्जो परलोयम्मी दुही चेव जह वा रक्खियवहुया रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा / परिजणमण्णा जाया भोगसुहाई च संपत्ता 251 7 / 3 / 15 74 / 16 75/17 76 / 18 77 / 19 78 / 20